विनय चालीसा  (Vinay Chalisa) – नीम करोली बाबा

विनय चालीसा  (Vinay Chalisa) – नीम करोली बाबा

बीसवीं सदी के महान संत नीम करोरी बाबा की अनुकम्पा पाने हेतु इस चालीसा का नित्य पाठ करेंI

 

मैं हूँ बुद्धि मलीन अति,

श्रद्धा भक्ति विहीन,

करूं विनय कछु आपकी,

हौं सब ही विधि दीन I

 

जै जै  नीब करौरी बाबा,

कृपा करहु आवै सदभावा I

 

कैसे मैं तव स्तुति बखानूँ,

नाम ग्राम कछु मैं नहिं जानूँ,

जापै कृपा दृष्टि तुम करहु,

रोग शोक दुःख दारिद हरहु I

 

तुम्हरौ रूप लोग नहिं जानै,

जापै कृपा करहु सोई भानैं,

करि दै अरपन सब तन मन धन,

पावै सुख अलौकिक सोई जन I

 

दरस परस प्रभु जो तव करई,

सुख सम्पति तिनके घर भरई,

जै जै संत भक्त सुखदायक,

रिद्धि सिद्धि सब सम्पति दायक I

 

तुम ही विष्णु राम श्री कृष्णा,

विचरत पूर्ण कारन हित तृष्णा,

जै जै जै जै श्री भगवंता,

तुम हो साक्षात भगवंता I

 

कही विभीषण ने जो बानी,

परम सत्य करि अब मैं मानी,

बिनु हरि कृपा मिलहिं नहिं संता,

सो करि कृपा करहिं दुःख अंता I

 

सोई भरोस मेरे उर आयो,

जा दिन प्रभु दर्शन मैं पायो,

जो सुमिरै तुमको उर माहीं,

ताकी विपति नष्ट हवे जाहीं I

 

जै जै जै गुरुदेव हमारे,

सबहि भाँति हम भये तिहारे,

हम पर कृपा शीघ्र अब करहूं,

परम शांति दे दुःख सब हरहूं I

 

रोग शोक दुःख सब मिट जावे,

जपै राम रामहि को ध्यावें,

जा विधि होइ परम कल्याणा,

सोई सोई आप देहु वारदाना I

 

सबहि भाँति हरि ही को पूजें,

राग द्वेष द्वंदन सो जूझें,

करैं सदा संतन की सेवा,

तुम सब विधि सब लायक देवा I

 

सब कछु दै हमको निस्तारो,

भव सागर से पार उतारो,

मैं प्रभु शरण तिहारी आयो,

सब पुण्यं को फल है पायो I

 

जै जै जै गुरुदेव तुम्हारी,

बार बार जाऊं बलिहारी,

सर्वत्र सदा घर घर की जानो,

रूखो सूखो ही नित खानों I

 

भेष वस्त्र हैं सादा ऐसे,

जानेंनहिं कोउ साधू जैसे,

ऐसी है प्रभु रहनि तुम्हारी,

वाणी कहौ रहस्यमय भारी I

 

नास्तिक हूँ आस्तिक हवे जावें,

जब स्वामी चेतक दिखलावें,

सब ही धर्मनि के अनुयायी,

तुम्हें मनावें शीश झुकाई I

 

नहिं कोउ स्वारथ नहिं कोउ इच्छा,

वितरण कर देउ भक्तन भिक्षा,

केहि विधि प्रभु मैं तुम्हें मनाऊँ,

जासों कृपा-प्रसाद तब पाऊँ I

 

साधु सुजन के तुम रखवारे,

भक्तन के हौ सदा सहारे,

दुष्टऊ शरण आनि जब परई,

पूरण इच्छा उनकी करई I

 

यह संतन करि सहज सुभाऊ,

सुनि आश्चर्य करइ जनि काऊ,

ऐसी करहु आप अब दाया,

निर्मल होइ जाइ मन और काया I

 

धर्म कर्म में रुचि होय जावै,

जो जन नित तव स्तुति गावै,

आवें सद्गुन तापे भारी,

सुख सम्पति सोई पावे सारी I

 

होइ तासु सब पूरन कामा,

अंत समय पावै विश्रामा,

चारि पदारथ है जग माहीं,

तव प्रसाद कछु दुर्लभ नाहीं I

 

त्राहि त्राहि मैं शरण तिहारी,

हरहु सकल मम विपदा भारी,

धन्य धन्य बड़ भाग्य हमारो,

पावैं दरस परस तव न्यारो I

 

कर्महीन अरु बुद्धि विहीना,

तव प्रसाद कछु वर्णन कीना I

 

श्रद्धा के ये पुष्प कछु,

चरनन धरे सम्हार,

कृपा-सिन्धु गुरुदेव तुम,

करि लीजै स्वीकार I

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