नमः शिवाय:
श्री शिवाय नमस्तुभ्यं
॥रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने, वही ये सृष्टि चला रहे है॥
रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने, वही ये सृष्टि चला रहे है,
जो पेड़ हमने लगाया पहले,
उसी का फल हम भी पा रहे है॥
रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने, वही ये सृष्टि चला रहे है॥
इसी धरा से शरीर पाए, इसी धरा में फिर सब समाए,
है धन्य नियम यही धरा का,
एक आ रहे है एक जा रहे है॥
रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने, वही ये सृष्टि चला रहे है॥
जो पेड़ हमने लगाया पहले,
उसी का फल हम भी पा रहे है॥
बैठे है जो धान की बालियो में, समाए मेहंदी की लालियो में,
हर डाल हर पत्ते में समाकर,
गुल रंग बिरंगे खिला रहे है॥
रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने, वही ये सृष्टि चला रहे है॥
जो पेड़ हमने लगाया पहले,
उसी का फल हम भी पा रहे है॥